
विरेन्द्र चौधरी
परमात्मा के यहाँ शब्दो द्वारा की गई प्रार्थना का कोई मतलब नही है क्योंकि शब्द मन घडंत होते है सत्य नही होते इसलिये झूठे शब्दो की प्रार्थना भी झूठी होगी ।
प्रार्थना हृदय से उद्धृत होनी चाहिये भावों से व्यक्त होनी चाहिये उस प्रार्थना का ही महत्व होता है।
प्रार्थना का मतलब ये नही होता कि मन मे किसी भगवान का फोटो होना चाहिये बल्कि यदि आप किसी पशु पक्षी पेड पौधे या अन्य प्राकृतिक जीव जन्तुओ को देखते वक्त भाव विभोर हो जाओ एक प्रकार से उसमे खो जाओ और हृदय मे करुणा व प्रेम उमडे तो वो परमात्मा की प्रार्थना ही है।
जब भी हम ध्यान से प्रकति को किसी भी रूप मे देखेंगे तो हमे परमात्मा के ही दर्शन होंगे।
जब हम किसी दुविधा या परेशानी मे हो और कोई जीव जन्तु या व्यक्ति हमारी मदद करता है तो उस वक्त उस जीव या व्यक्ति ने हमारी मदद नही की बल्कि परमात्मा ने उसके माध्यम से हमारी मदद की। आपने ध्यान किया हो ऐसा व्यक्ति मदद करके अपने रास्ते चला जाता है आपके धन्यवाद का इन्तजार या अपेक्षा नही करता ।
जितनी हमारी सोच स्वच्छ निर्मल और शुद्ध होती जायेगी हमे उतना ही पृक्रती से प्रेम होने लगेगा करुणा भाव बढ़ने लगेगा।
इच्छाओ के पार निकल जाना ही सन्यास है।
समझ ही समाधान है।
