
मानसी सैनी
भयमुक्त जीवन
कोरोना का भय वास्तव मे कोरोना का नही बल्कि मौत का भय है। मौत सत्य है उसे एक दिन आना ही है फ़िर इस भय मे आज को जीना क्यो छोड दे। सावधानी रखना गलत नही लेकिन भयभीत होकर जीना गलत है।
आज घर पर शांत बैठ्कर ये हिसाब तो लगाया जा सकता है कि आज तक की जिन्दगी मे ऐसा क्या कमाया है जो मेरे कार्मिक अकाउंट मे जमा है और मौत भी मुझसे छीन नही पायेगी। जिस तरह से प्रकृती की गौद मे एक फूल खिलता है और उसके चारों तरफ का वातावरण महकने लगता है क्या मै भी इसी तरह खिल पाया हूँ क्या मेरी सुगंध भी सभी के लिए उप्लब्ध है या फ़िर मैने अपने को कली मे ही इतना जकड़ लिया है कि स्वयं को खिलने ही नही दिया । यदि ऐसा है तो मौत आज आ जाये या 30 वर्ष बाद आ जाये उससे क्या फर्क पड़ता है।
हमे स्वयं को ये तोलकर देखना है कि जीवन के उच्चतर मूल्यो को हम कितना समझ पाये है। हमारे जीवन का आधार धन पद प्रतिष्ठा है या धर्म है शरीर है या आत्मा है। यदि स्वयं को परखने पर समझ मे आता है कि जीवन का आधार धर्म और आत्मा नही है तो जीवन की निम्नतर कीमत धन पद प्रतिष्ठा मे ही उलझे रह गये।
स्वयं को परखने के लिए भी होश की जरुरत पडेगी इस बेहोशी की अवस्था मे हमारी परख भी गलत ही होगी।
प्रेम और ध्यान ये दो ही मार्ग है जो होश की ओर ले जाते है प्रेम स्वयं को मिटाता है और ध्यान दूसरे को । दोनो ही अवस्था मे द्वैत खत्म होता है। समझ ही समाधान है